आज के दौर में इंसान के पास जानकारी की कोई कमी नहीं है। टीवी, सोशल मीडिया, न्यूज पेपर, बैनरबाजी, सड़क किनारे होने वाली चर्चाएँ, और लोगों की दूसरों के बारे में बोलने-टिप्पणी करने की आदतें हर जगह सूचना का अंबार है।
शिक्षा क्षेत्र भी बचपन से ही बच्चों को भारी-भरकम किताबों के ज़रिये केवल सूचना भरने में अधिक लगा हुआ है।
धर्म के नाम पर बोलने वाले लोगों की भीड़ बहुत है, लेकिन सही मार्गदर्शन और जीवन-ज्ञान देने वाले कम होते जा रहे हैं।
इसी वजह से आज अच्छे संस्कार, इमानदारी, बड़ों का सम्मान, नम्रता, सही आध्यात्म, स्मरण-शक्ति, सही धर्म का ज्ञान, उत्कृष्ट चरित्र निर्माण, सही तरीके से सफल होना, देशभक्ति, त्याग, दया, करुणा, आपसी प्यार, भाईचारा, और उत्तम स्वास्थ्य — ये सभी मूल्य लोगों के जीवन से धीरे-धीरे दूर होते जा रहे हैं।
पचास साल पहले का समय कम सुविधाएँ, पर ज्यादा संस्कार
आज से 40–50 वर्ष पहले हालात बिल्कुल अलग थे।
बचपन से ही घर और स्कूल में व्यायाम,नैतिक पाठ,अर्थपूर्ण कविताएँ,स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिये दोहराने लगाना,अनुशासन,बड़ों का सम्मान, कम सुविधा में भी संतोष समाधानी रहने की सीख
इन सब बातों की नियमित शिक्षा और प्रशिक्षण दिया जाता था।
जीवन सरल था, पर सदाचार अधिक था।
सुविधाएँ कम थीं, पर संतोष ज्यादा था।
धार्मिकता थी, पर ढोंग नहीं था।
शिक्षा थी, पर बोझ नहीं था।
आज सूचना सहज है, पर विवेक दुर्लभ
आज तकनीक के कारण हर जानकारी पल भर में मिल जाती है।
परंतु समस्या यह है कि जानकारी बढ़ी है, पर मन की शांति, विवेक और जीवन का बोध कम हुआ है। सूचना बिना समझ के बोझ बन जाती है।
आज का समाज वही बोझ लेकर चल रहा है।
बच्चों से लेकर बड़ों तक, सभी के आसपास इतना शोर है कि
अंदर की आवाज़ सुनने का समय ही नहीं बचा।
समाज को क्या चाहिए? सही दिशा या सिर्फ सूचना?
यदि आने वाली पीढ़ियों को बचाना है, तो आवश्यक है कि
पाठ्यक्रम में संस्कार और व्यवहारिक शिक्षा शामिल हो।
धर्म का अर्थ केवल कथाओं में नहीं, जीवन में लागू करने में सिखाया जाए।
परिवार एक साथ भोजन और संवाद की आदत वापस लाए।
बच्चों को मोबाइल से ज्यादा मानवीय मूल्य दिए जाएँ।
स्वास्थ्य के लिये योग, व्यायाम, ध्यान फिर से दिनचर्या का हिस्सा बने।
समाज में “मैं” की जगह “हम” की सोच को बढ़ावा मिले।
ज्ञान, विवेक और मनुष्यता का पुनर्जागरण ही आज की सबसे बड़ी जरूरत है।
आज सूचना का युग है सब कुछ मिल जाता है, बस एक क्लिक में
परंतु जीवन जीने का सही तरीका, सही संस्कार, सही समझ ये कहीं खोते जा रहे हैं।
सूचना हमें तेज़ बनाती है,
पर ज्ञान हमें इंसान बनाता है।
इसलिए समाज को सिर्फ जानकारी नहीं,
बल्कि संस्कार, मन का अनुशासन, संतुलन, और सच्चा जीवन-ज्ञान वापस अपनाना होगा।
-राजेंद्र सिंघ शाहू
इलेक्ट्रिकल ट्रैनंर नांदेड
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