नांदेड़ (प्रतिनिधि)-महाराष्ट्र नांदेड के खंडेलवाल समाज में घटी एक घटना के अनुसार बारह वर्षपुर्व हुई एक शादी में मनमुटाव हुवा और उसके बाद महिला के एक रिश्तेदार वकीलने मै हर दिन कानून के साथ खेलता हु ऐसा कह कर लडके वालो कों परेशान किया। इस मामले में प्रथम श्रेणी न्यायालय बार्शीने एक निर्णय दिया। इस में लिखी हुई बातों के अनुसार नांदेड के वकील को अगर कानुन की समज है। तो उसे यह फटकारही है । ऐसा हमने लिखा तो शायद गलत न होगा। दूसरों के घरों में आग लगाने की आदत रखने वाले इस वकील के घर में भी अब आग लग गई है।
नांदेड में रहनेवाले एक खंडेलवाल समाज के युवक का विवाह बार्शी में रहनेवाले एक महिला के साथ बारह वर्ष पहले हुआ। इन बारह वर्षो में इन दोनोेने दो बच्चों को जन्म दिया। जिसमे एक बालिका हैऔर एक बालक है। बालिका की उम्र आज 13 वर्ष है। और बालक की उम्र 7 वर्ष है।
साल 2022 में नांदेड़ शहर के एक खंडेलवाल परिवार में पारिवारिक विवाद हो गया। इस झगड़े को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाना परिवार और समाज की जिम्मेदारी है। लेकिन मामला ज्यादा होने पर मामला प्रशासन यानी पुलिस के पास चला गया। कुछ हद तक पुलिस ऐसे मामलों को अपनी मेहनत से सुलझा लेती है लेकिन अगर कोई इसमें घी डाल रहा है तो पुलिस के लिए ऐसा करना नामुमकिन होता है। इसी तरह, नांदेड़ के मामले में, पति-पत्नी के बीच का विवाद नांदेड के एक वकील की मदद से बार्शी पुलिस के पास पहुंच गया। क्योंकि वह महिला बार्शी की मूल निवासी है। वहा भारतीय दंड संहिता की धारा 498 के तहत मामला दर्ज किया गया । इसके बाद लड़के के परिवार ने वकील से केस खत्म करने की गुहार लगाई। वकील ने उनके साथ बेहद गंदे शब्दों का व्यवहार किया। भारतीय संस्कृति में सिखाए गए छोटे-बड़े के रिश्ते को भूलकर वकील ने लड़के के परिजनों के साथ भी बहुत बुरा व्यवहार किया। इस परिवार के दोनों भाइयों को सड़क पर लाकर भीख मंगवाऊंगा ऐसा कहा, जेल भेजूंगा, जिने नहीं दुंगा ऐसे शब्दोंसे पीड़ा दी। तंग आकर लड़के का परिवार कई दिनों तक परेशान रहा। इसके बाद मामले में कोई तीसरा शख्स शामिल हो गया और वकील के पिछवाड़े में आग लग गई। वकील ने भी उस आदमी की खूब बदनामी की, लेकिन वह मानुस के परिवार की मदद करने के लिए आपनी बदनामी के बादभी डरे नहीं। उस मामले में एक नए आदमी की एंट्री हुई तो वकील ने इस केस में भारतीय दंड संहिता की धारा 354, भारतीय तांत्रिक अधिनियम जुडवाई ताकी इस मामले में अपराधी व्यक्तीयोंको जमानत मिलने में परेशानी हो। बार्शी में भी कुछ राजनीतिक लोगों ने इस मामले में हाथ धोया। इसके चलते कुछ पुलिसकर्मी सक्रिय हो गए और लड़के के परिवार को परेशान करने के तरीके ढूंढने लगे। लेकिन वो कहते हैं न कि अगर आपका रवैया अच्छा है तो आपको कोई परेशानी नहीं होगी। इस मामले में महिला की ओर से बार्शी कोर्ट में आपराधिक आवेदन संख्या 282/2022 दायर किया गया। यह आवेदन घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार था। इसमें एक्झीबिट क्रमांक 19 कें अनुसार तत्काल स्वरुप पति के कब्जे में है वह दो बच्चें तत्काल मेरी हिरासत में दिये जाये ऐसी मांग की। पति पर लगाये गये आरोपों के चलते ही कोर्ट ने पत्नी को बच्चों की कस्टडी देने का आदेश दिया. पति ने फिर से जिला न्यायालय, बार्शी में अपील की। उस अपील में भी जिला जज ने प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के आदेश को कॉपी कर पेस्ट कर दिया और बच्चों की कस्टडी महिला को सौंपने को कहा.मामला मुंबई हाईकोर्ट पहुंचा। पति की ओर से हाईकोर्ट में रिट याचिका संख्या 2569/2023 दायर कर न्याय की मांग की गयी। जब मामला अदालत में चल रहा था, तो समाज के कुछ आधे-अधूरे सदस्य मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने का प्रस्ताव लेकर आए। महिला को दोनों बच्चे और बड़ी रकम देने का प्रस्ताव था। लेकिन चूंकि मामला हाईकोर्ट में था इसलिए इस पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई। हाईकोर्टने जब इस केस का अध्ययन किया तो दोनों पक्षों के सामने एक अहम मसला उपस्थित किया। जिसमें आप दोनों एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। ये आरोप सबूतों का हिस्सा हैं। आज जो मामला हमारे सामने है। तदनुसार, बच्चों का कल्याण अधिक महत्वपूर्ण है। जिस पर दोनों पार्टियां बात नहीं कर रही हैं। इसलिये, उच्च न्यायालय ने मामले को प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट बार्शी के पास वापस भेज दिया और उन्हें बच्चों के हित, कल्याण को ध्यान में रखते हुए मामले को नए सिरे से तय करने का आदेश दिया। पुराने दोनों निर्णयों को रद्द किया। और मामले का निर्णय करते समय विस्तृत कारणों के साथ नया निर्णय दिया जाना चाहिए ऐसा हाईकोर्ट ने कहा और मामले को तीन हफ्ते मोहलत के साथ अंतिम निर्णय देने के लिये बार्शी कोर्ट में भेज दिया। मुंबई हाईकोर्ट के आदेश पर बार्शी प्रथम श्रेणी कोर्ट ने मामले को दैनिक बोर्ड में रखा। दोनों पक्षों ने अपनी ओर से शपथ पत्र दाखिल किये। अदालत ने बच्चों सें बात करने की इच्छा नहीं जताई और अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि जिन बच्चोंका स्कूल बदलता है, उनके लिए परिणाम प्रतिकूल होते है। साथ ही पति के परिवार में तीन महिलाएं लड़की की देखभाल करने में सक्षम हैं। साथ ही इस मामले में लड़की की उम्र 12 साल और लड़के की उम्र 7 साल है। तदनुसार, वार्डशिप अधिनियम के अनुसार, नैसर्गिक अभिभावक अर्थात पालक पिता होता है। ऐसा उल्लेख आपने आदेश में किया। महिला की ओर से दिए गए हलफनामे में रिश्तेदारों का विश्लेषण करते हुए न्यायाधीश ने यह भी उल्लेख किया कि उनमें से दो उनके परिवार जन नहीं हैं और दो काम के लिए पुणे में रहते हैं। कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि नांदेड़ एक जिला है, बार्शी एक तहसील है, इसलिए नांदेड़ में बार्शी से ज्यादा सुविधाएं मिलेंगी। स्कूल से बच्चों की अनुपस्थिति के बारे में महिला द्वारा व्यक्त किए गए संदेह को खारिज करते हुए, प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट बार्शी ने लिखा कि जिस दौरान कानून का मामला प्रलंबित था, उस दौरान बच्चों की अनुपस्थिति थी। एक्झीबिट क्रमांक 19 पर यह आदेश देते हुए जज ने दोनों बच्चों की कस्टडी पत्नी को देने से इनकार कर दिया। इसके साथ ही, बार्शी मजिस्ट्रेट ने उस पद्धति को बरकरार रखा जिसके द्वारा मुंबई उच्च न्यायालय की न्यायमुर्ती श्रीमती शर्मिला देशमुख ने बच्चों और मॉं की मुलाक़ात का फैसला किया था। इस मामले का फैसला बार्शी अदालत में प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट जहांगीर पठान ने किया। इस मामले में, महिला की और सें ऍड.ए.आर.पाटिल ने काम किया। ओर लडके की ओरसे ऍड. एस.एस.जाधवर ने काम किया। मुंबई हायकोर्ट में इस मामले में लडके की ओर से ऍड.रणजित नायर ने काम किया। महिला की ओर से ऍड.सिमा सरनाईक तथा ऍड प्रभंजन गुजर ने काम देखा।
नांदेड़ के दूसरे पिढी के एक नामी वकील द्वारा घरेलू मामले को सड़क पर लाकर दो परिवारों को बदनाम करने का खूबसूरत काम किया गया। हालॉंकि प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट ने बच्चे के पक्ष में फैसला सुनाया है, लेकिन मामला ख़त्म नहीं हुआ है। फिर मामला डिस्ट्रिक्ट कोर्ट, फिर हाईकोर्ट, फिर सुप्रीम कोर्ट में जाएगा। मामले का नतीजा जो भी होगा। लेकिन एक वकील दो परिवारों, नांदेड़ के बेटे और बार्शी की बेटी की परेशानी के लिए जिम्मेदार है। वकील दुनिया का एकमात्र ऐसा पेशा है जिसके नाम के आगे नोबल विशेषण लगता है। फिर नांदेड़ के वकील का नोबल कहां चला गया, यह पीएचडी प्राप्त करने के लिये अच्छा विषय हो सकता है।
वंश परंपरा की संपत्ती खाने का प्रकार
जिस वकील ने इन दोनों परिवारों में आग लगा दी। अब उनके घर का एक मामला सामने आया है। उनके पिता ने नांदेड नांदेड़ शहर से होकर बहने वाली नदी के उस पार एक सोसायटी में एक बड़ा भूखंड लिया था। अब उस वकील के वकील पिताजी का देहांत हो चुका है। फिर भी वह भुखंड अभीभी दिवंगत वकील के नाम पर है। मूलतः वे तीन भाई हैं। इनमें नंबर 2 के भाई को यह प्लॉट देना तय हुआ था । लेकिन पिता की मृत्यु के बाद आज के वकील ने यह साजिश गुप्त रूप से की की पिता के कुछ सेवकोंके के हाथों वह जमीन खाने की तयारी सुरू की। लेकिन उस संस्था का अध्यक्ष बहुत ही नेक इंसान है। उन्होंने कहा कि बिना विरासत प्रमाणपत्र लाए मैं इस प्लॉट का हस्तांतरण नहीं करूंगा। लेकिन आज साफ-सुथरी सोच वाले अध्यक्ष होने के नाते ठीक है। लेकिन अगर नया चुनाव होता है और नया अध्यक्ष आता है, लेकिन तब जमीन का यह टुकड़ा उसके वकील के भाई का है, तो ऐसा लगता है कि यह वकील जमीन का टुकड़ा जरूर खा जाएगा।