अब आपसी स्पर्धक दोस्त बन गए है;क्या राज हो सकता है इसका
नांदेड़ (प्रतिनिधि)-खांडल विप्र संगठन महाराष्ट्र की मातृसंस्था महासभा ने चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के लिए दो पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की थी। हालांकि, चुनाव के दौरान इन पर्यवेक्षकों के नामों की घोषणा नहीं की गई थी, जिसका अर्थ है कि महाराष्ट्र संगठन के पूर्व पदाधिकारी और चुनाव निर्णय अधिकारी असमंजस की स्थिति में हैं। इससे संदेह पैदा हो गया है। कई उलझनों के साथ चल रही यह चुनाव प्रक्रिया कानून की दृष्टि से अवैध है।
महाराष्ट्र प्रदेश संगठन की चुनाव प्रक्रिया जनवरी 2025 के महीने में शुरू हुई थी। यह भी निर्णय लिया गया था कि इस चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने वाले प्रत्येक उम्मीदवार को राज्य संगठन को 51 हजार रुपये नकद देने होंगे, जो वापस नहीं होंगे। यह निर्णय महासभा को मंजूरी के लिए भेजा गया था। हालांकि, महासभा ने 29 जनवरी 2025 को 51 हजार रुपये लेने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया। इस पर महासभा के महासचिव अशोक कुमार खांडल के हस्ताक्षर हैं। वास्तव में, मंजूरी के लिए महासभा को पत्र भेजने की कोई जरूरत नहीं थी। नियमों के अनुसार, हमें महासभा को सूचित करना था कि हमने यह निर्णय लिया है। साथ ही, सोलापुर से मदनगोपाल निढाणीया और इचलकरंजी से गौरीशंकर डिडवानिया को चुनाव के लिए नियुक्त किया गया था। वे महाराष्ट्र प्रदेश संगठन के चुनावों को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के लिए जिम्मेदार हैं। हालांकि, इन दोनों की नियुक्ति महाराष्ट्र प्रदेश संगठन के साथ-साथ चुनाव निर्णय अधिकारियों द्वारा छिपाई गई है। क्या कारण हो सकता है? खांडल समाज के लोग इस बारे में बात कर रहे हैं। मदनगोपाल निढाणीया के पास अधिकार नहीं होने के बावजूद, वे अभी भी बैंक के लेन-देन पर अपने हस्ताक्षर करते हैं। पदाधिकारियों के बदलने के बाद भी उनके हस्ताक्षर का उपयोग क्यों जारी है। इस सवाल का जवाब आज तक किसी ने नहीं दिया।
चुनाव में तीन उम्मीदवार हैं। अमरावती से दामोधर काछवाल, इचलकरंजी से संतोष पिपलवा और नासिक से रामावतार रिणवा, रामावतार रिणवा 51 हजार रुपए दिए बिना मैदान में हैं। महासभा से यह अनुमति दिलाने में सुनील चोटिया नामक व्यक्ति शामिल है। सुनील चोटिया क्यों शामिल है? चर्चा है कि सुनील चोटिया महासभा अध्यक्ष मोहनलाल बोचीवाल के कान के निचे रहते हैं। वह भी संगठन BHMB के सक्रिय कार्यकर्ता हैं ऐसा उनके चुनाव के दरमियाँ चल रहा था। तीन चुनाव निर्णय अधिकारी घोषित किए गए। जिसमें प्रधान पद जालना से गौरीशंकर चोटिया के पास था। अन्य दो सहायक लातूर से मनोज रिणवा और नांदेड से प्रेमराज रूथला थे। जब चुनाव प्रक्रिया चल रही थी, तब मुख्य चुनाव अधिकारी का पद गौरीशंकर चोटिया से हटाकर लातूर से विजयकुमार सेवदा को दे दिया गया और कहा जा रहा है कि मनोज रिणवा ने इस्तीफा दे दिया। इसलिए नई नियुक्ति की गई। पहले चुनाव कार्यालय जालना में था, अब इसे लातूर में स्थानांतरित कर दिया गया है। ऐसी व्यवस्था की एक अजीब कहानी खांडल विप्र संगठन महाराष्ट्र प्रदेश चुनाव की है। बताया जा रहा है कि एक मतदाता ने वकील के माध्यम से इस संबंध में नोटिस भी दिया है।
नांदेड़ (प्रतिनिधि)-खांडल विप्र संगठन महाराष्ट्र की मातृसंस्था महासभा ने चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के लिए दो पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की थी। हालांकि, चुनाव के दौरान इन पर्यवेक्षकों के नामों की घोषणा नहीं की गई थी, जिसका अर्थ है कि महाराष्ट्र संगठन के पूर्व पदाधिकारी और चुनाव निर्णय अधिकारी असमंजस की स्थिति में हैं। इससे संदेह पैदा हो गया है। कई उलझनों के साथ चल रही यह चुनाव प्रक्रिया कानून की दृष्टि से अवैध है।
महाराष्ट्र प्रदेश संगठन की चुनाव प्रक्रिया जनवरी 2025 के महीने में शुरू हुई थी। यह भी निर्णय लिया गया था कि इस चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने वाले प्रत्येक उम्मीदवार को राज्य संगठन को 51 हजार रुपये नकद देने होंगे, जो वापस नहीं होंगे। यह निर्णय महासभा को मंजूरी के लिए भेजा गया था। हालांकि, महासभा ने 29 जनवरी 2025 को 51 हजार रुपये लेने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया। इस पर महासभा के महासचिव अशोक कुमार खांडल के हस्ताक्षर हैं। वास्तव में, मंजूरी के लिए महासभा को पत्र भेजने की कोई जरूरत नहीं थी। नियमों के अनुसार, हमें महासभा को सूचित करना था कि हमने यह निर्णय लिया है। साथ ही, सोलापुर से मदनगोपाल निढाणीया और इचलकरंजी से गौरीशंकर डिडवानिया को चुनाव के लिए नियुक्त किया गया था। वे महाराष्ट्र प्रदेश संगठन के चुनावों को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के लिए जिम्मेदार हैं। हालांकि, इन दोनों की नियुक्ति महाराष्ट्र प्रदेश संगठन के साथ-साथ चुनाव निर्णय अधिकारियों द्वारा छिपाई गई है। क्या कारण हो सकता है? खांडल समाज के लोग इस बारे में बात कर रहे हैं। मदनगोपाल निढाणीया के पास अधिकार नहीं होने के बावजूद, वे अभी भी बैंक के लेन-देन पर अपने हस्ताक्षर करते हैं। पदाधिकारियों के बदलने के बाद भी उनके हस्ताक्षर का उपयोग क्यों जारी है। इस सवाल का जवाब आज तक किसी ने नहीं दिया।
चुनाव में तीन उम्मीदवार हैं। अमरावती से दामोधर काछवाल, इचलकरंजी से संतोष पिपलवा और नासिक से रामावतार रिणवा, रामावतार रिणवा 51 हजार रुपए दिए बिना मैदान में हैं। महासभा से यह अनुमति दिलाने में सुनील चोटिया नामक व्यक्ति शामिल है। सुनील चोटिया क्यों शामिल है? चर्चा है कि सुनील चोटिया महासभा अध्यक्ष मोहनलाल बोचीवाल के कान के निचे रहते हैं। वह भी संगठन BHMB के सक्रिय कार्यकर्ता हैं ऐसा उनके चुनाव के दरमियाँ चल रहा था। तीन चुनाव निर्णय अधिकारी घोषित किए गए। जिसमें प्रधान पद जालना से गौरीशंकर चोटिया के पास था। अन्य दो सहायक लातूर से मनोज रिणवा और नांदेड से प्रेमराज रूथला थे। जब चुनाव प्रक्रिया चल रही थी, तब मुख्य चुनाव अधिकारी का पद गौरीशंकर चोटिया से हटाकर लातूर से विजयकुमार सेवदा को दे दिया गया और कहा जा रहा है कि मनोज रिणवा ने इस्तीफा दे दिया। इसलिए नई नियुक्ति की गई। पहले चुनाव कार्यालय जालना में था, अब इसे लातूर में स्थानांतरित कर दिया गया है। ऐसी व्यवस्था की एक अजीब कहानी खांडल विप्र संगठन महाराष्ट्र प्रदेश चुनाव की है। बताया जा रहा है कि एक मतदाता ने वकील के माध्यम से इस संबंध में नोटिस भी दिया है।
अब तो यह बात भी चल रही है की,आपस में एक दूसरे को हरवाने की तयारी कर रहे लोक एकत्रित हो गए है।कल तक दामोदर काछवाल को जितने के लिए मेहनत कर रहे लोग अब खामोश है क्युकी उन्होंने अपना नामांकन वापस ले लिया है। कुछ दिन पूर्व महासभा अध्यक्ष मोहनलाल बोचीवाल काछवाल जिताने का आदेश दे रहे थे। दूसरे उमीदवार रामावतार रिणवा को नामांकन वापिस लेने के लिए सुनील चोटीया सहित अन्य लोग दबाव बना रहे है।अब संतोष पीपलवा को बिना विरोध चुनवाकर लाना है यह परिस्थिति बनायीं गयी है। संतोष पीपलवा पुराने सभी घोटाले उजागर करूँगा ऐसा बापलटे थे । अब वही पुराने पदाधिकारियोके साथ चुनाव बगैर विरोध के जितना चाहते है । चुनाव अधिकारियोंने चुनाव की अवधी बढाकर फिर एकबार गैर क़ानूनी कार्य कर दिया है।ऐसी है खांडल विप्र संघटन की अजब चुनाव की अजब गजब कहानी ।देखिये समाज बंधुओं क्या क्या चल रहा है।
